
बरसात में उगने वाला रहस्यमय पौधा ‘काला बिछुआ’, जिसे बघनखी, बाघनखी या बाघनख के नाम से भी जाना जाता है, अपने अद्भुत औषधीय गुणों के कारण तेजी से चर्चा में आ रहा है। यह पौधा न सिर्फ अपने अनूठे स्वरूप के कारण लोगों को आकर्षित करता है, बल्कि इसके औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी इसकी मांग बढ़ती जा रही है।
मॉनसून में उगने वाला मौसमी पौधा
बघनखी (Black Nettle) एक मौसमी पौधा है, जो सिर्फ बरसात के मौसम में ही देखने को मिलता है। सर्दी का मौसम शुरू होते ही यह पौधा सूख जाता है। इसके पत्ते बड़े और रोएंदार होते हैं, जो इसकी पहचान को और भी खास बनाते हैं। इस पौधे के सूखने के बाद इसके फल चटक जाते हैं और इनमें से जो बीज निकलता है, वह काले या भूरे रंग का बड़ा बीज होता है, जो आकार में बाघ के नाखून जैसा दिखाई देता है। यही वजह है कि इसे ‘बघनखी’ या ‘बाघनख’ के नाम से जाना जाता है।
हथजोड़ी से जुड़ी भ्रांतियां
कई बार इसे ‘हथजोड़ी’ नामक वनस्पति समझ लिया जाता है, जबकि यह पूरी तरह से अलग पौधा है। ‘हथजोड़ी’ के नाम से पहले बाजार में जो वस्तु बेची जा रही थी, वह असल में मॉनिटर लिजर्ड (गोह) का जननांग था। वैज्ञानिक शोधों के बाद यह स्पष्ट हुआ कि इस झूठे प्रचार के कारण मॉनिटर लिजर्ड की अवैध तस्करी और हत्या की जा रही थी, जिसे रोकने के लिए इसे कानूनी रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया।
ऐसे धोखाधड़ी फैलाने वाले लोग दावा करते थे कि असली ‘हथजोड़ी’ विंध्याचल के जंगलों, हिमालय की गहराइयों या किसी रहस्यमयी पेड़ की जड़ों में मिलती है, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इन भ्रामक दावों से न केवल वन्यजीवों को नुकसान होता है, बल्कि लोगों की समझदारी पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।
अंग्रेजी नाम और वैज्ञानिक पहचान
इस रहस्यमयी पौधे को अंग्रेजी में Devil’s Claw (डेविल्स क्लॉ) कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘शैतानी पंजा’। इसका वैज्ञानिक नाम Martynia Annua (मार्टिनिया एनुआ) है। देसी क्षेत्रों में इसे ‘उलट कांटा’, ‘बिच्छू फल’ या ‘बिच्छू झाड़ी’ के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन ये नाम एक भ्रम पैदा करते हैं क्योंकि यह पौधा पूरी तरह से अलग प्रजाति से संबंधित है।
वैज्ञानिक शोध से मिली पुष्टि
नेशनल स्कूल ऑफ लाइब्रेरी द्वारा जून 2022 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, इस पौधे में मौजूद Anti-inflammatory (सूजन रोधी) गुण शरीर में सूजन और दर्द को दूर करने में बेहद प्रभावी पाए गए हैं। शोध में यह भी बताया गया कि डेविल्स क्लॉ पौधे में कोलेस्ट्रॉल रोधी, Antioxidant, Painkiller गुण भरपूर मात्रा में होते हैं।
इन गुणों के चलते यह पौधा रूमेटाइड अर्थराइटिस, पीठ दर्द, ऑस्टियोआर्थराइटिस, कटिवात, मधुमेह, अपच, और सीने में जलन जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसके साथ ही यह विषहरण और टॉनिक एजेंट की तरह कार्य करता है, जो शरीर की संपूर्ण प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक है।
परंपरागत प्रयोग और घरेलू उपाय
ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में इस पौधे के उपयोग की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसके पत्तों को सरसों के तेल में पकाकर तैयार किया गया तेल जोड़ों के दर्द में अत्यधिक लाभकारी माना जाता है। इसके अलावा इसके सूखे फलों को कूटकर तेल में पकाने से एक प्रभावशाली दर्द निवारक तेल तैयार किया जाता है, जिसका उपयोग कई प्रकार के शारीरिक दर्दों में किया जाता है।
बालों की देखभाल के लिए भी यह पौधा कमाल का माना जाता है। इसके फलों से निकाले गए तेल को बालों में लगाने से समय से पहले सफेद होने की समस्या में राहत मिलती है। वहीं, इसकी जड़ का चूर्ण अश्वगंधा के चूर्ण के साथ मिलाकर शहद के साथ सेवन करने से गठिया रोग में भी काफी राहत मिलती है।
पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का मेल
‘काला बिछुआ’ या ‘बघनखी’ का औषधीय उपयोग यह साबित करता है कि हमारे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक शोधों का मेल कितनी गहराई से हो सकता है। जहां एक ओर यह पौधा भारत के कई हिस्सों में सहज रूप से उगता है, वहीं दूसरी ओर इसकी औषधीय महत्ता विश्व स्तर पर स्वीकार की जा रही है। यह पौधा Renewable Resource की तरह प्राकृतिक चिकित्सा में एक मजबूत विकल्प बन सकता है, जिससे रासायनिक दवाओं पर निर्भरता कम की जा सकती है।
आयुर्वेद में संभावनाएं
आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में इस पौधे को शामिल करने से न सिर्फ देसी उपचार पद्धति को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यह स्वदेशी फार्मा इंडस्ट्री के लिए भी एक लाभकारी अवसर साबित हो सकता है। इसकी खेती को बढ़ावा देकर किसान Sustainable Farming और औषधीय खेती की ओर आकर्षित हो सकते हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे सकती है।