
गर्भावस्था के पहले तिमाही में मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य को लेकर कई तरह की जाँचें होती हैं। इन्हीं में से एक अहम जांच है Double Marker Test, जो गर्भस्थ शिशु में संभावित क्रोमोसोमल असामान्यताओं की पहचान के लिए की जाती है। यह टेस्ट विशेष रूप से Down Syndrome (Trisomy 21), Edwards Syndrome (Trisomy 18) और Patau Syndrome (Trisomy 13) जैसे जोखिमों का प्रारंभिक मूल्यांकन करता है। यह एक सरल रक्त जांच होती है जिसे विशेष समयावधि में कराया जाना चाहिए ताकि समय रहते आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
यह भी देखें: इन 5 आदतों से दिमाग हो रहा कमजोर – सोचने-समझने की ताकत पर पड़ रहा असर
Double Marker Test में क्या-क्या जांचा जाता है
यह टेस्ट मां के रक्त में मौजूद दो प्रमुख बायोमार्कर को जांचता है — Free Beta-hCG और PAPP-A (Pregnancy-Associated Plasma Protein A)। Free Beta-hCG एक हार्मोन है जिसे प्लेसेंटा बनाता है और इसका अधिक स्तर डाउन सिंड्रोम की ओर संकेत कर सकता है, जबकि PAPP-A एक प्रोटीन होता है जिसका स्तर कम होने पर क्रोमोसोमल असमानताओं की आशंका बढ़ जाती है। इन दो हार्मोन स्तरों को अल्ट्रासाउंड (NT Scan), मां की उम्र और गर्भावस्था की अवधि जैसे कारकों के साथ मिलाकर एक कम्प्यूटेड रिस्क रेशियो तैयार किया जाता है।
कब कराना चाहिए Double Marker Test
Double Marker Test को कराने का आदर्श समय गर्भावस्था के 9वें से 13वें सप्ताह के बीच होता है। हालांकि, डॉक्टर इसे आमतौर पर 11वें से 13वें सप्ताह के बीच कराने की सलाह देते हैं ताकि अन्य जांच जैसे न्युकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन (NT Scan) के साथ मिलाकर अधिक सटीक परिणाम मिल सकें। यदि यह समय निकल जाए तो बाद में Quadruple Marker Test का विकल्प उपलब्ध होता है, जिसे 15 से 21 सप्ताह के बीच किया जा सकता है।
यह भी देखें: बादाम को भी पीछे छोड़ देगा ये जूसी फल! ब्रेन पावर और याददाश्त बढ़ाने के लिए रोज खाएं 3 महीने
Double Marker Test के परिणाम कैसे समझें
टेस्ट के परिणाम सामान्यतः एक अनुपात (Ratio) में दिए जाते हैं जैसे कि 1:250 या 1:1000। इसका अर्थ यह होता है कि उदाहरण के लिए 1:1000 का मतलब है कि 1000 गर्भवती महिलाओं में से 1 को ऐसे परिणाम मिल सकते हैं जो संभावित असामान्यता की ओर इशारा करते हैं। अगर यह अनुपात 1:250 या इससे कम हो तो इसे High Risk माना जाता है और डॉक्टर आगे की जांच जैसे NIPT (Non-Invasive Prenatal Testing), Amniocentesis या CVS (Chorionic Villus Sampling) की सिफारिश कर सकते हैं। वहीं, अगर अनुपात 1:1000 या उससे ज्यादा हो तो यह Low Risk कैटेगरी में आता है।
Double Marker Test के लाभ और विश्वसनीयता
यह टेस्ट न केवल सुरक्षित और गैर-आक्रामक है बल्कि इससे गर्भावस्था के शुरूआती चरण में ही संभावित जटिलताओं को पहचाना जा सकता है। यह माता-पिता को समय रहते निर्णय लेने में सहायता करता है। जिन महिलाओं की उम्र 35 वर्ष से अधिक हो या जिनके पारिवारिक इतिहास में कोई जेनेटिक डिसऑर्डर हो, उनके लिए यह जांच और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत में इस टेस्ट की लागत ₹1,000 से ₹5,000 के बीच हो सकती है, जो स्थान और प्रयोगशाला पर निर्भर करती है।
यह भी देखें: बाजरा सिर्फ खाने से नहीं, बालों के लिए भी है फायदेमंद! जानें सर्दियों में इसके जबरदस्त फायदे