
बिना दवा खाए खांसी और बुखार से राहत पाने के लिए भारतीय परिवारों में सदियों से चले आ रहे घरेलू उपाय आज भी उतने ही कारगर हैं जितने पहले हुआ करते थे। आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली में अदरक, हल्दी, गिलोय और तुलसी जैसे हर्ब्स को प्राकृतिक इम्यूनिटी बूस्टर माना गया है। जब मौसम बदलता है या शरीर थकावट व संक्रमण के कारण कमजोर हो जाता है, तब ये देसी उपाय बिना किसी साइड इफेक्ट के शरीर को राहत देने में मदद करते हैं।
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अदरक-शहद का असरदार मिश्रण

अदरक और शहद का मेल खांसी में रामबाण की तरह काम करता है। अदरक में पाए जाने वाले जिंजरोल कंपाउंड में सूजन और दर्द को कम करने वाले गुण होते हैं, जबकि शहद में एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट तत्व मौजूद होते हैं। यह मिश्रण खासतौर पर सूखी खांसी और गले में जलन के लिए बेहद प्रभावी है। सुबह-शाम इसका सेवन करने से आराम मिलता है और बलगम ढीला होकर बाहर निकलने लगता है।
मुलेठी की चाय से गले को आराम
मुलेठी को गले के लिए वरदान माना गया है। आयुर्वेद में इसे कंठशुद्धि और बल्य गुणों के लिए जाना जाता है। मुलेठी की जड़ को पानी में उबालकर बनी चाय गले की सूजन को कम करती है और बार-बार आने वाली खांसी में राहत देती है। यह खासकर तब उपयोगी होता है जब गले में खुजली और जलन लगातार बनी रहती है।
हल्दी वाला दूध

हल्दी वाला दूध भारतीय घरों में “गोल्डन मिल्क” के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें करक्यूमिन नामक तत्व होता है जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। हल्दी और दूध मिलकर शरीर की अंदरूनी गर्मी को नियंत्रित करते हैं, जिससे बुखार में राहत मिलती है। खासकर रात को सोने से पहले गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर पीने से गले की खराश और खांसी दोनों में राहत मिलती है।
भाप लेना
सर्दी, जुकाम और खांसी में भाप लेना एक पुराना लेकिन अत्यंत प्रभावी उपाय है। गर्म पानी में नीलगिरी या पुदीना का तेल डालकर भाप लेने से बंद नाक खुलती है, बलगम ढीला होता है और गले की सूजन कम होती है। यह न केवल सांस की नली को खोलता है, बल्कि शरीर को भी हल्का महसूस कराता है।
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नमक वाले पानी से गरारे

गले की सूजन और खराश को दूर करने के लिए नमक वाले गुनगुने पानी से गरारे करना सबसे आसान और प्रभावी तरीका है। नमक की एंटीसेप्टिक प्रकृति बैक्टीरिया को खत्म करती है और गले की जलन को शांत करती है। रोजाना 2-3 बार इस प्रक्रिया को दोहराने से जल्दी आराम मिलता है।
गिलोय का काढ़ा
गिलोय को आयुर्वेद में अमृता कहा गया है, जिसका मतलब है “अमरत्व प्रदान करने वाली जड़ी-बूटी।” गिलोय के सेवन से शरीर का तापमान नियंत्रित होता है और इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। गिलोय की ताजी डंडियों को पानी में उबालकर उसका काढ़ा तैयार करें और दिन में दो बार सेवन करें, खासकर वायरल बुखार या मौसमी संक्रमण के समय।
लहसुन और धनिया

लहसुन में ऐलिसिन नामक तत्व पाया जाता है जो जीवाणु और विषाणुओं से लड़ने में सहायक होता है। गर्म पानी में लहसुन डालकर पीने से बुखार में राहत मिलती है। वहीं धनिया के बीजों की चाय शरीर को ठंडक पहुंचाती है और पसीने के माध्यम से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने में मदद करती है, जिससे शरीर का तापमान गिरता है।
अदरक और पुदीना का काढ़ा
जब अदरक की गर्म तासीर और पुदीना की ठंडी प्रकृति एक साथ मिलती है, तो यह मिश्रण बुखार को नियंत्रित करने में काफी कारगर साबित होता है। यह काढ़ा शरीर की भीतरी सफाई करता है और थकान को दूर करता है। इसका सेवन सुबह और रात दोनों समय करने से जल्दी असर महसूस होता है।
पर्याप्त आराम और हाइड्रेशन की आवश्यकता

बिना दवा खाए शरीर को ठीक करने का मूलमंत्र है – आराम और पानी। शरीर जितना ज्यादा हाइड्रेट रहेगा, उतनी जल्दी विषैले तत्व बाहर निकलेंगे और तापमान नियंत्रित होगा। नारियल पानी, सूप और नींबू पानी का सेवन बुखार में बेहद उपयोगी होता है। साथ ही हल्का, सुपाच्य और पोषक आहार भी तेजी से रिकवरी में सहायक होता है।
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