
जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपने आवास पर बेहिसाब नकदी मिलने के मामले में खुद को निर्दोष बताते हुए इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है। यह मामला अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के पास पहुँच चुका है, जो तय करेंगे कि आगे महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होगी या नहीं।
यह भी देखें: ATM में ‘Cancel’ बटन दो बार दबाने से बच जाएगा आपका पिन? जानिए इस वायरल दावे की सच्चाई!
दिल्ली आवास में नकदी और आग का मामला
14 मार्च 2025 को दिल्ली में जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना ने पूरे देश को चौंका दिया। आग बुझाने पहुँची दमकल टीम को वहां भारी मात्रा में जलती हुई नकदी मिली। जब यह घटना हुई, तब जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी शहर में नहीं थे। घर पर सिर्फ उनकी बेटी और वृद्ध मां मौजूद थीं। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में जलते हुए कैश बंडल साफ देखे गए, जिससे संदेह और भी गहरा हो गया।
CJI की ओर से जांच समिति का गठन
देश की न्यायपालिका में पारदर्शिता बनाए रखने के उद्देश्य से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने 22 मार्च को एक तीन-सदस्यीय जांच समिति गठित की। इसमें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थीं। समिति ने 4 मई को अपनी रिपोर्ट CJI को सौंप दी, जिसमें स्पष्ट रूप से जस्टिस वर्मा को दोषी पाया गया।
CJI ने दी थी इस्तीफा या महाभियोग की चेतावनी
रिपोर्ट के आधार पर CJI ने 4 मई को जस्टिस वर्मा को रिपोर्ट भेजकर दो विकल्प दिए – या तो वे खुद इस्तीफा दें या फिर महाभियोग की प्रक्रिया का सामना करें। जस्टिस वर्मा ने 6 मई को अपना जवाब देते हुए सभी आरोपों से इनकार किया और कहा कि उन्हें जानबूझकर इस मामले में फंसाया जा रहा है। उनका कहना है कि इस घटना के पीछे कोई गहरी साजिश है।
यह भी देखें: बाथरूम, वॉशरूम और टॉयलेट में क्या है अंतर! 90% लोग नहीं जानते असली फर्क क्या आप जानते हैं?
अब निर्णय राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के हाथ में
चूंकि जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा नहीं दिया, CJI ने पूरी रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को भेज दिया है। अब यह दोनों संवैधानिक पदाधिकारी तय करेंगे कि क्या इस मामले में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत किसी जज के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा में 100 सांसदों या राज्यसभा में 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है।
न्यायपालिका की साख पर बड़ा सवाल
यह मामला न केवल एक जज के व्यक्तिगत आचरण पर सवाल उठाता है, बल्कि देश की न्यायपालिका की साख और पारदर्शिता पर भी असर डालता है। उच्च न्यायालयों में बैठे जजों के खिलाफ कार्रवाई दुर्लभ होती है, लेकिन यह घटना उस परंपरा को चुनौती देती है। अगर महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होती है, तो यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
राजनीतिक और कानूनी गलियारों में हलचल
इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल न्यायिक प्रणाली को झकझोर दिया है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल पैदा कर दी है। एक ओर विपक्षी दल इस मामले को लेकर सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार CJI द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई करने की तैयारी में है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखते हुए निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है।
यह भी देखें: ‘राइट टू प्रॉपर्टी’ अब मौलिक अधिकार नहीं? हाई कोर्ट का बड़ा फैसला और सरकार को सीधा अल्टीमेटम!