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China Solar Ban: चीन की कंपनियों पर भारत का तगड़ा वार, 5 साल की लगी रोक, शेयर बाजार ने मचाया तूफान!

भारत ने चीन और वियतनाम से आयातित सोलर ग्लास पर 5 साल का एंटी-डंपिंग शुल्क लगा दिया है। यह फैसला न केवल घरेलू कंपनियों को मजबूती देगा, बल्कि विदेशी सोलर मार्केट को भी हिला देगा। जानिए इस निर्णय का बाजार, ऊर्जा नीति और आपके निवेश पर क्या असर होगा – पूरी जानकारी इस रिपोर्ट में।

By Divya Pawanr
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भारत ने China Solar Ban के तहत एक बड़ा कदम उठाते हुए चीन और वियतनाम से आयात होने वाले सोलर ग्लास पर 5 वर्षों के लिए एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया है। यह फैसला वाणिज्य मंत्रालय के अधीन आने वाले डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज (DGTR) की जांच के बाद लिया गया, जिसका सीधा असर भारतीय शेयर बाजार और Renewable Energy सेक्टर पर दिखाई दे रहा है। ऐसे में चलिए जानते हैं इस खबर से जुडी पूरी जानकारी।

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एंटी-डंपिंग शुल्क क्या है?

एंटी-डंपिंग शुल्क एक आर्थिक उपाय है जो किसी देश द्वारा उस स्थिति में लगाया जाता है जब कोई विदेशी कंपनी अपने उत्पादों को बेहद कम कीमत पर निर्यात करती है—जो उनके घरेलू बाजार की कीमत से भी कम होती है। इसे “डंपिंग” कहा जाता है। इसका मकसद होता है स्थानीय निर्माताओं को अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाना।

एंटी-डंपिंग शुल्क का दायरा और उद्देश्य

इस निर्णय के तहत, टेक्सचर्ड टफेंड (टेम्पर्ड) कोटेड और अनकोटेड सोलर ग्लास पर अब $570 से लेकर $664 प्रति टन तक शुल्क लगाया जाएगा, जो 4 दिसंबर 2024 से प्रभावी होगा और अगले 5 वर्षों तक लागू रहेगा। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में सोलर ग्लास के घरेलू निर्माताओं को अनुचित रूप से सस्ते आयात से बचाना और ‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहित करना है।

शेयर बाजार में हलचल

भारतीय बाजार में इसका तत्काल असर देखने को मिला, जहां घरेलू सोलर ग्लास बनाने वाली कंपनियों जैसे बोरोसिल रिन्यूएबल्स लिमिटेड के शेयरों में तेजी देखी गई। कंपनी ने इस कदम का स्वागत करते हुए इसे घरेलू उद्योगों को मजबूती देने वाला निर्णय बताया।

चीन की प्रतिक्रिया और संभावित सप्लाई चेन संकट

जहां भारत ने आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है, वहीं चीन ने भी पलटवार करने में देर नहीं की। चीन ने इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर और इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाली महत्वपूर्ण मशीनरी और कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे भारतीय कंपनियों को Supply Chain में रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है।

भारत की आयात पर निर्भरता में गिरावट

भारत में सोलर आयात पर निर्भरता में पहले से ही कमी आ रही है। 2024-25 के पहले आठ महीनों में, सोलर सेल्स के आयात में 20% और सोलर मॉड्यूल्स के आयात में 57% की गिरावट दर्ज की गई है। अब भारत की चीन पर सोलर सेल्स के लिए निर्भरता 56% और मॉड्यूल्स के लिए 65% तक सीमित हो गई है। इसका मतलब है कि भारत अब Renewable Energy सेक्टर में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है।

आत्मनिर्भरता और 2030 के Renewable Energy लक्ष्य

भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावॉट Renewable Energy क्षमता स्थापित करना है। हालांकि, इस राह में चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। घरेलू उत्पादन की लागत अधिक है और गुणवत्ता बनाए रखना एक बड़ी जिम्मेदारी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को कम लागत और उच्च गुणवत्ता के बीच संतुलन बिठाना होगा ताकि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रह सके।

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पीएलआई योजना और मेक इन इंडिया का प्रभाव

वहीं, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यह प्रतिबंध भारत के लिए एक अवसर है। पीएलआई योजना (Production-Linked Incentive) और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिए घरेलू निवेश को आकर्षित किया जा सकता है। इससे इनोवेशन, रोजगार, और स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा।

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चीन को कितना होगा नुकसान?

1. अरबों डॉलर के निर्यात पर असर:
भारत, चीन के लिए एक बड़ा सोलर उत्पाद बाजार रहा है। 2023 तक भारत में उपयोग होने वाले सोलर मॉड्यूल का 75% से अधिक हिस्सा चीन से आता था। भारत ने अब एंटी-डंपिंग शुल्क लगाकर इस व्यापार पर सीधी चोट की है। अनुमान है कि चीन को इससे हर साल $300-400 मिलियन (₹2,500-3,300 करोड़) का नुकसान हो सकता है, सिर्फ सोलर ग्लास और संबंधित आयात पर।

2. मार्केट शेयर में गिरावट:
भारतीय कंपनियों को अब प्रतिस्पर्धी कीमतों में बढ़त मिलेगी जिससे चीनी कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी घटेगी। इससे चीन के निर्यात-आधारित सोलर सेक्टर को अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर दबाव झेलना पड़ेगा।

3. सप्लाई चेन का नुकसान:
भारत अब चीन से सोलर से जुड़ी मशीनरी, रॉ मटीरियल और टेक्नोलॉजी का आयात घटा रहा है। इससे चीन की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स पर सप्लाई चेन ब्रेकडाउन का खतरा बढ़ेगा और उत्पादन में गिरावट आ सकती है।

भारत को आने वाले समय में होने वाले फायदे

1. घरेलू विनिर्माण को बूस्ट:
सोलर ग्लास, मॉड्यूल और सेल्स जैसे उत्पादों का घरेलू स्तर पर निर्माण बढ़ेगा। इससे ‘मेक इन इंडिया’ को बल मिलेगा और भारत Renewable Energy में आत्मनिर्भर बन सकेगा।

2. रोज़गार और निवेश में बढ़ोतरी:
जैसे-जैसे भारत का सोलर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बढ़ेगा, वैसे-वैसे नए प्लांट्स, स्टार्टअप्स और MSMEs खुलेंगे, जिससे हजारों रोजगार उत्पन्न होंगे। साथ ही, FDI (विदेशी निवेश) भी आकर्षित होगा।

3. ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security):
भारत अब चीन जैसे देशों पर निर्भर हुए बिना अपनी Renewable Energy ज़रूरतें पूरी कर पाएगा। इससे ऊर्जा की कीमतों पर नियंत्रण, लॉजिस्टिक लचीलापन, और आपात स्थिति में सप्लाई कंट्रोल आसान होगा।

4. टेक्नोलॉजी इनोवेशन:
जब भारत अपने आप तकनीक विकसित करेगा, तब स्थानीय इनोवेशन, R&D और एडवांस मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा, जो आने वाले वर्षों में भारत को सोलर टेक्नोलॉजी में ग्लोबल लीडर बना सकता है।

सोलर बैन का भू-राजनीतिक

भारत सरकार का यह निर्णय केवल व्यापारिक मोर्चे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव भूराजनीतिक रिश्तों, ऊर्जा सुरक्षा, और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों तक भी फैला हुआ है। भारत यदि घरेलू स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा समाधान विकसित करता है तो यह न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी होगा, बल्कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट की दिशा में एक ठोस कदम भी होगा।

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