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आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में डिप्रेशन और तनाव (Depression and Stress) हमारे मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। ताजगी से भरपूर दिमाग भी अगर लंबे समय तक तनाव में रहे, तो वह समय से पहले बूढ़ा होने लगता है। हाल ही में साइकोलॉजिकल मेडिसिन (Psychological Medicine) नामक एक मैग्जीन में प्रकाशित स्टडी में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि तनाव, चिंता और अवसाद जैसे मेंटल डिसऑर्डर केवल मूड को प्रभावित नहीं करते, बल्कि दिमाग की संरचना (Brain Structure) में भी बदलाव लाते हैं।
बढ़ता मानसिक तनाव बना रहा है नई सदी की बीमारी
आजकल ज्यादातर लोग शारीरिक मेहनत के बजाय मानसिक श्रम करते हैं। व्हाइट कॉलर जॉब में काम करने वाले लाखों लोग दिनभर कंप्यूटर के सामने बैठे रहते हैं, जिससे शारीरिक से ज़्यादा मानसिक थकान होती है। ऐसी स्थिति में दिमाग पर काम का दबाव लगातार बना रहता है और मेंटल हेल्थ पर असर दिखने लगता है। यही कारण है कि डिप्रेशन, एंग्जायटी और स्ट्रेस जैसी समस्याएं पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सामने आ रही हैं।
रिसर्च में सामने आया चौंकाने वाला सच
साइकोलॉजिकल मेडिसिन में प्रकाशित इस नई स्टडी के अनुसार, डिप्रेशन से ग्रसित लोगों का दिमाग उनकी वास्तविक उम्र से कहीं ज़्यादा बूढ़ा दिखाई देता है। इस शोध में कुल 670 लोगों के ब्रेन स्कैन का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 239 लोग मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर (Major Depressive Disorder) से पीड़ित थे। शोधकर्ताओं ने दिमाग के विभिन्न हिस्सों की मोटाई का अध्ययन कर यह अनुमान लगाया कि किस व्यक्ति का मस्तिष्क कितना “बूढ़ा” हो चुका है।
कॉग्निटिव क्षमताओं पर पड़ रहा है असर
स्टडी में यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि जिन लोगों को डिप्रेशन था, उनके मस्तिष्क में कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में पतलापन (Thinning) पाया गया। विशेष रूप से बाएं वेंट्रल क्षेत्र (Left Ventral Region) और प्रीमोटर आई फील्ड (Premotor Eye Field) में यह प्रभाव देखा गया। इस बदलाव का सीधा असर व्यक्ति की क्रिटिकल थिंकिंग, याददाश्त और अन्य कॉग्निटिव कार्यों (Cognitive Functions) पर पड़ता है। यानी व्यक्ति का दिमाग उम्र से पहले ही काम करना धीमा कर देता है।
न्यूरोट्रांसमीटर और जेनेटिक बदलाव भी हैं कारण
इस शोध में यह भी पता चला कि मस्तिष्क में होने वाले इन परिवर्तनों के पीछे न्यूरोट्रांसमीटर जैसे डोपामाइन (Dopamine), सेरोटोनिन (Serotonin) और ग्लूटामेट (Glutamate) की भूमिका होती है। ये केमिकल्स मूड और ब्रेन फंक्शन को संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। जब व्यक्ति डिप्रेशन की स्थिति में होता है, तो इन न्यूरोट्रांसमीटर का संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे मस्तिष्क की संरचना प्रभावित होती है। इसके अलावा कुछ जीन भी सक्रिय हो सकते हैं जो ब्रेन सेल्स में प्रोटीन बाइंडिंग को प्रभावित करते हैं और मस्तिष्क की उम्र बढ़ा देते हैं।
बढ़ सकता है डिमेंशिया और अल्जाइमर का खतरा
स्टडी में यह भी बताया गया है कि जो लोग लंबे समय तक डिप्रेशन में रहते हैं, उनमें न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों जैसे डिमेंशिया (Dementia) और अल्जाइमर (Alzheimer’s) का खतरा बढ़ जाता है। मस्तिष्क के कॉर्टेक्स का पतला होना इन बीमारियों की शुरुआत का संकेत हो सकता है। यानी मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी करना सीधे-सीधे गंभीर ब्रेन डिसऑर्डर की ओर ले जा सकता है।
मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी है समय पर एक्शन लेना
इस स्टडी के निष्कर्ष मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को दोबारा रेखांकित करते हैं। जैसे हम फिजिकल हेल्थ के लिए एक्सरसाइज, सही खानपान और रुटीन को फॉलो करते हैं, उसी तरह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी रेस्ट, मेडिटेशन, सोशल इंटरैक्शन और जरूरत पड़ने पर प्रोफेशनल मदद लेना जरूरी है। मेंटल हेल्थ को नजरअंदाज करना, सिर्फ मूड पर नहीं बल्कि ब्रेन की लॉन्ग टर्म हेल्थ पर गहरा असर डाल सकता है।
टेक्नोलॉजी युग में बढ़ रही है दिमाग पर मार
बदलते वक्त में जहां टेक्नोलॉजी, सोशल मीडिया और फास्ट-फेस्ड लाइफस्टाइल ने हमारे जीवन को सुविधाजनक बनाया है, वहीं यह मेंटल हेल्थ के लिए एक नया खतरा भी बन गया है। लगातार स्क्रीन पर समय बिताना, नींद की कमी, सोशल प्रेशर और व्यक्तिगत अपेक्षाएं — ये सब मिलकर मानसिक तनाव को जन्म देते हैं, जिससे दिमाग धीरे-धीरे अपनी ऊर्जा और युवावस्था खोने लगता है।