
भारत-पाकिस्तान तनाव (India-Pakistan tension) एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है, और इसी के साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि इस तनाव पर दुनिया किस ओर झुक रही है। जहां भारत आतंकी हमलों के खिलाफ कड़ा रुख दिखा रहा है, वहीं पाकिस्तान अपने खिलाफ आरोपों से इनकार करता रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव से दुनियाभर में अलग-अलग देशों से प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
बता दें, दुनियाभर में भारत-पाकिस्तान तनाव को लेकर यह चिंता बनी हुई है की यह लड़ाई किसी परमाणु युद्ध में न बदल जाए। हालाँकि इस तनाव को देखते हुए बहुत से देशों ने भारत के प्रति अपना समर्थन जताते हुए कूटनीति और मध्यस्थता का रास्ता अपनाने की बात कही है, तो वहीँ दूसरी तरफ कुछ देश ऐसे भी हैं जो खुलकर पाकिस्तान का समर्थन कर युद्ध में अपना समर्थन जता रहे हैं। ऐसे में ईरान-Iran, तुर्की-Turkey और सऊदी अरब-Saudi Arabia जैसे ताकतवर मुस्लिम देशों की स्थिति पर भी सबकी नजर है।
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युद्ध पर ईरान का संतुलित रुख
ईरान ने इस बार भी संतुलन की नीति अपनाई है। वह न भारत का विरोध कर रहा है, न पाकिस्तान का खुला समर्थन। ईरान ने दोनों देशों से संपर्क कर तनाव कम करने की अपील की है और मध्यस्थता की पेशकश भी रखी है। यह रुख ईरान के लिए रणनीतिक रूप से जरूरी है क्योंकि वह भारत के साथ चाबहार पोर्ट और ऊर्जा व्यापार के जरिए गहरे संबंध बना रहा है, वहीं पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति भी उसके लिए अहम है।
तुर्की का खुला समर्थन पाकिस्तान को
तुर्की ने एक बार फिर पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा होकर पुराने रिश्तों को मजबूत किया है। राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन ने कश्मीर मुद्दे और पुलवामा हमले जैसे मामलों पर पाकिस्तान की ‘संयमित’ प्रतिक्रिया की तारीफ की है। तुर्की ने हाल ही में पाकिस्तान को ड्रोन्स की आपूर्ति भी की है, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग और बढ़ा है। भारत इस रुख से नाराज़ है क्योंकि तुर्की का यह समर्थन भारत की सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज करता है।
सऊदी अरब की चुपचाप मध्यस्थता
सऊदी अरब की भूमिका इस बार कहीं ज्यादा ‘डिप्लोमैटिक’ रही है। उसने न तो किसी का खुला समर्थन किया, न ही बयानबाजी की। बल्कि इसके उलट, सऊदी विदेश मंत्री ने भारत और पाकिस्तान दोनों का दौरा कर शांति की अपील की। यह रुख इसलिए अहम है क्योंकि सऊदी अरब भारत के सबसे बड़े तेल आपूर्तिकर्ताओं में से एक है और वह भारत के साथ अपने आर्थिक संबंधों को खतरे में नहीं डालना चाहता। वहीं पाकिस्तान के साथ उसका ‘इस्लामी सहयोग’ भी है जिसे वह पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं कर सकता।
कूटनीतिक समीकरण और रणनीतिक प्राथमिकताएं
इन तीनों देशों की प्रतिक्रिया दरअसल उनकी भौगोलिक, आर्थिक और सामरिक प्राथमिकताओं पर आधारित है। जहां ईरान तटस्थ रहने की कोशिश कर रहा है, वहीं तुर्की खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़ा है, और सऊदी अरब बैलेंस बनाने की कोशिश कर रहा है। यह वैश्विक कूटनीति की जटिलता को दर्शाता है—जहां रिश्ते भावनाओं से नहीं, बल्कि रणनीति और हितों से तय होते हैं।
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अन्य देशों की प्रतिक्रया
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। इस परिप्रेक्ष्य में, चीन, नेपाल और अमेरिका की प्रतिक्रियाएं महत्वपूर्ण हैं, जो उनके रणनीतिक हितों और क्षेत्रीय स्थिरता की प्राथमिकताओं को दर्शाती हैं।
चीन संतुलन और मध्यस्थता की पेशकश
चीन ने भारत और पाकिस्तान दोनों से संयम बरतने की अपील की है और क्षेत्रीय शांति के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया है। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह दोनों देशों के साथ संपर्क में है और तनाव कम करने के लिए रचनात्मक भूमिका निभाने को तैयार है। चीन ने आतंकवाद के सभी रूपों का विरोध करते हुए दोनों पक्षों से अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन करने का अनुरोध किया है।
नेपाल शांति और स्थिरता की अपील
नेपाल ने भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर चिंता व्यक्त की है और दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की है। नेपाली अधिकारियों ने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए संवाद और कूटनीतिक समाधान को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है।
अमेरिका कूटनीतिक प्रयास और मध्यस्थता की पेशकश
अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान दोनों से तनाव कम करने की अपील की है और कूटनीतिक प्रयासों के माध्यम से समाधान खोजने का आग्रह किया है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने दोनों देशों के नेताओं से बातचीत कर तनाव कम करने के लिए रचनात्मक वार्ता शुरू करने में सहायता की पेशकश की है। हालांकि, अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि वह इस संघर्ष में सैन्य हस्तक्षेप नहीं करेगा, लेकिन वह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन करेगा।
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